सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में प्रांतीय गणित-विज्ञान मेला का हुआ विधिवत उद्घाटन

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सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में प्रांतीय गणित-विज्ञान मेला का हुआ विधिवत उद्घाटन

गिरिडीह शहर के बरगंडा स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में मंगलवार को प्रांतीय गणित-विज्ञान मेला का उद्घाटन हुआ। मुख्य अतिथि डॉ अनुज कुमार, प्राचार्य गिरिडीह महाविद्यालय, विशिष्ट अतिथि श्रीकांत यशवंत विस्पुते सदर एसडीएम, अजय कुमार तिवारी प्रदेश सचिव विद्या विकास समिति झारखंड, समिति सचिव डॉ पवन मिश्रा,उपाध्यक्ष सतीश्वर प्रसाद सिन्हा एवं प्रधानाचार्य आनंद कमल ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
मौके पर प्रदेश सचिव ने कहा कि प्राचीन एवं अर्वाचीन ज्ञान से हमें बच्चों को परिचित कराना है। कदम-कदम पर विज्ञान है। ऊंची डिग्री प्राप्त करने के बाद भी हमें अपने संस्कारों को नहीं छोड़ना चाहिए। अध्ययन के साथ-साथ नवाचार अपने आप में विकसित हो ऐसा हमें बनना है। पंचकोश के विकास से ही भैया-बहनों का सर्वांगीण विकास होगा। बचपन से ही कर्तव्य बोध होना चाहिए। स्वयं नेतृत्वकर्त्ता बनकर राष्ट्र की सेवा करने का संकल्प लेना चाहिए। विशिष्ट अतिथि अनुमंडल पदाधिकारी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से बच्चों का संपूर्ण विकास होता है। विज्ञान के साथ कला की भी आवश्यकता होती है। कला ही विज्ञान से परे नहीं है।
विज्ञान प्रश्न पूछने के लिए आपको मजबूर करता है। बाहर की दुनिया के बारे में जब तक आप नहीं सोचेंगे,कुछ भी अच्छे नहीं कर सकते। ज्ञान,विज्ञान और गणित मानव के विकास में सहायक होते हैं। डॉ अनुज कुमार ने कहा कि विज्ञान की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। शालीन्नता, तजुर्बा,त्याग, तपस्या और जज्बा का हमारे जीवन में महती आवश्यकता है। अच्छाइयों को आत्मसात करें और जीवन में सदैव आगे बढ़ने का प्रयास करे। विज्ञान मेला चुनौतियों का हल ढूंढने की प्रवृत्ति को विकसित करने का एक माध्यम है। कार्यक्रम में पूर्णकालिक ओमप्रकाश सिन्हा, अखिलेश कुमार, नीरज लाल, तुलसी प्रसाद ठाकुर, ब्रजेश कुमार सिंह, रमेश कुमार,संजीव कुमार,शर्मेंद्र साहू,राजीव रंजन, रामजी प्रसाद,मनोज छापरिया,प्रभात सेठी आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन ब्रेन कुमार टुड्डू एवं धन्यवाद ज्ञापन उमेश कुमार सिन्हा ने किया। मौके पर अतिथियों को शाल एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। इस विज्ञान मेले में झारखंड प्रांत के आठ विभाग से कुल 807 भैया- बहन एवं संरक्षक आचार्य-दीदी उपस्थित हुए।

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