पलामू: चेरो जनजाति की पहचान और आरक्षण की रक्षा के लिए सतबरवा में सभा, संगठन ने चेतावनी जारी की
पलामू: चेरो जनजाति की पहचान और आरक्षण की रक्षा के लिए सतबरवा में सभा, संगठन ने चेतावनी जारी की
झारखंड के पलामू जिले के सतबरवा प्रखंड में चेरो आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और संवैधानिक पहचान को बचाने की मुहिम तेज हो गई है। राष्ट्रीय चेरो जनजाति महासंघ के बैनर तले ग्राम पंचायत रबदा के रबदा गांव में पीपल छबूतरा के समीप आयोजित एक विशाल सभा में संगठन ने स्पष्ट चेतावनी दी कि चेरो जनजाति का ST (अनुसूचित जनजाति) दर्जा किसी भी सूरत में छीना नहीं जाएगा। सभा में वक्ताओं ने कुर्मी-कुड़मी समुदायों को ‘दोस्त’ बनाने की अपील की, लेकिन उनकी जनजातीय दर्जे की मांग को सिरे से खारिज करते हुए आंदोलन की तैयारी जताई।
सभा की अध्यक्षता राष्ट्रीय चेरो जनजाति महासंघ के संयोजक अवधेश सिंह चेरो ने की, जबकि मंच संचालन स्थानीय कार्यकर्ता कमेश सिंह ने किया। सभा में सैकड़ों चेरो समुदाय के सदस्यों ने भाग लिया, जो पलामू की आदिवासी विरासत को मजबूत करने के संकल्प के साथ एकजुट दिखे।
पूर्वजों से मिला ST दर्जा, इसे कोई छीन नहीं सकता’
मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय चेरो जनजाति महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन सिंह ने कहा, “हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। चेरो समुदाय को पूर्वजों से ही आदिवासी का दर्जा प्राप्त है, जो संवैधानिक रूप से सुरक्षित है। लेकिन कुछ लोग, जैसे कुर्मी और कुड़मी, जो खुद को जनजातीय मानने का ख्वाब देख रहे हैं, हमें भी उनके साथ शामिल करने की साजिश रच रहे हैं। यह कदापि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि जरूरी हुआ तो सड़क से सदन तक आंदोलन करेंगे, बलिदान भी देंगे। हमेशा तैयार रहें।” सिंह ने जोर देकर कहा कि चेरो समुदाय को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन अन्य समुदायों की मांग से इसका हनन नहीं होने देंगे।
‘मजबूत संघर्ष से ही बचेगी आदिवासी सभ्यता’
वहीं पर समाजसेवी भरदुल सिंह चेरो ने बताया, “हमें अपनी हक की लड़ाई मजबूती से लड़नी होगी। तभी हमारी आदिवासी सभ्यता, संस्कृति और आरक्षण सुरक्षित रह सकेगा। चेरो जनजाति पलामू की धरती पर सदियों से बसी हुई है, और हम अपनी पहचान की रक्षा के लिए एकजुट हैं।” पयुवाओं से अपील की कि वे संगठन के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करें। पलामू का चेरो इतिहास: विद्रोह और संघर्ष की धरती
पलामू जिले का इतिहास चेरो जनजाति के संघर्षों से जुड़ा हुआ है। मुगल काल से लेकर ब्रिटिश राज तक चेरो राजाओं ने इस क्षेत्र पर शासन किया और स्वतंत्रता के बाद भी अपनी पहचान बनाए रखी। 1800 ई. में भुखन सिंह के नेतृत्व में चेरो विद्रोह इसका जीवंत उदाहरण है, जब उच्च करों और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई गई। आज भी सतबरवा जैसे प्रखंडों में चेरो समुदाय की आबादी प्रमुख है, जहां रबदा गांव (जनसंख्या लगभग 1,869, 2011 जनगणना के अनुसार) आदिवासी संस्कृति का केंद्र है।
यह सभा चेरो समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर तब जब विभिन्न समुदायों के बीच ST दर्जे को लेकर विवाद तेज हो रहा है। संगठन ने घोषणा की कि आने वाले दिनों में और सभाएं आयोजित की जाएंगी, ताकि समुदाय की एकता मजबूत हो। स्थानीय प्रशासन ने सभा को शांतिपूर्ण रखने का आश्वासन दिया है।

