“संगीत की विरासत के सारथी — सूरज मिश्रा”
संगीत की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं सूरज मिश्रा
जहाँ एक तरफ आज गायक -कलाकार तेज़ी से अपनी पहचान बनाने हेतु भोजपुरी संगीत में अश्लीलता और फूहड़ द्विअर्थी गीतों को बोलबाला करने की होड़ करते हैं ,वहीं दूसरी तरफ हमारे डालटनगंज की माटी के लाल सूरज मिश्रा अपने सुरीले और मधुर स्वर से पारम्परिक लोक संगीत की विरासत को निखार रहे हैं।
सूरज न सिर्फ़ खुद संगीत के साधक हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी संगीत की शिक्षा देकर उन्हें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ रहे हैं। उनकी मेहनत और समर्पण ने पूरे क्षेत्र को गर्व कराया है। ऐसे सच्चे कलाकारों के कारण ही हमारा समाज और संस्कृति जिंदा है। ऐसे कलाकार ही सच्चे अर्थों में हमारी मिट्टी की पहचान हैं।
संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बना रहे सूरज मिश्रा अपने खानदान की पाँचवीं पीढ़ी हैं जो संगीत की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। सूरज मिश्रा न केवल शास्त्रीय संगीत गायन में निपुण हैं, बल्कि वे सुगम संगीत, गीत, ग़ज़ल, भजन, उपशास्त्रीय संगीत और लोकगीत जैसी विविध शैलियों में भी समान दक्षता रखते हैं।
सूरज मिश्रा आकाशवाणी -दूरदर्शन के ग्रेडेड तबला वादक भी हैं, जो उनके बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने अब तक 6 लोकगीतों का गायन किया है, जिसमें ” साक्षरता गीत , नशा मुक्ति गीत ,पिया के वियोग माई हो ,पिया धीरे धीरे चढ़े मधुमास , बलम हो गईले देख s बिहान ,बा जिनगी अन्हार पिया भोर लेले आइह ” हिट हुआ है | इसे अपने यू ट्यूब चैनल “सूरज मिश्रा ऑफिसियल” ,फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया है। और अभी दर्जनों लोकगीत ,ग़ज़ल ,गीत का धुन स्वर निर्णाण कार्य वो कर रहे हैं | उनके गीतों को लोगों का भरपूर प्यार मिल रहा है और आज उनके हज़ारों फ़ॉलोवर्स उनके सुरों के दीवाने हैं।
सूरज मिश्रा का उद्देश्य है कि भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाए, ताकि परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम समाज में गूंजता रहे।
सूरज मिश्रा पलामू प्रमंडल के शास्त्रीय संगीत के पुरोधा स्व. राम रक्षा मिश्र के पौत्र और स्व .राजा राम मिश्र के सुपुत्र हैं|
ये वर्तमान में शहर में सन 1993 से स्थापित “देवरानी संगीत महाविद्यालय”
संगीत प्रशिक्षण केंद्र चला रहे हैं जो प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से मान्यता प्राप्त है | देवरानी संगीत महाविद्यालय से अब तक हज़ारों विद्यार्थियों ने संगीत शिक्षा प्राप्त कर इस क्षेत्र में सफलता हासिल की है | विरासत में शास्त्रीय संगीत और सुगम संगीत के मिलने के बावजूद इन्होने लोकगीत गायन में रूचि दिखाई और
अपने गीतों को गाकर पेश किया | लोकगीत गायन के लिए सूरज अपने कार्यस्थल डीएवी लातेहार के प्राचार्य श्री घनश्याम कुमार सहाय को अपना गुरु और अभिभावक मानते हैं और उन्हें ही अपनी सफलता का श्रेय देते हैं ,जिन्होंने सूरज को अब तक 20 से अधिक लोकगीत ,ग़ज़ल ,गीत के बोल लिखकर दी है और लोकसंगीत के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने की सलाह और सकारात्मक दिशा दी है | सूरज मिश्रा श्री सहाय की लिखित रचना को ही स्वरबद्ध कर के गाया है |

