करबला की घटना मजलूमों के साथ एकजुटता दिखाने और जालिमों के खिलाफ खड़े होने का संदेश देती है : अयुब खान
इसलाम और इंसानियत को बचाने की खातिर मुहर्रम के दसवीं को यजीद के साथ लड़ते करबला में शहीद हुए थे ईमाम हुसैन
जालीम और मजलुम की दास्तां है करबला
चंदवा। ईमाम हसन हुसैन की करबला की घटना मजलूम (उत्पीड़ित) और जालिम (अत्याचारी) के बीच की लड़ाई की एक दास्तां है, सामाजिक कार्यकर्ता अयुब खान ने कहा कि यह घटना इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत से जुड़ी है, ईमाम हुसैन ने यजीद (अत्याचारी) की सेना के खिलाफ एक अन्यायपूर्ण जंग लड़े थे।
बताया जाता है कि 680 ईस्वी में, इमाम हुसैन, जो पैगंबर मुहम्मद के नवासे थे ने यजीद के शासन के खिलाफ विद्रोह किया और लड़ाई लड़ी।
यजीद की अपराध अत्याचारी शासन ने इमाम हुसैन के पास यह संदेश भेजवाया कि ईमाम हुसैन हमारे खेमे में आ जाएं और हमारे विचारों पर चलें जब इमाम हुसैन ने यज़ीद का यह संदेश सुना तो उन्होंने यजीद को यह संदेश भेजवा दिया कि हम हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब के घराने से हैं, इस्लाम और इंसानियत की राह पर चलने वालों में से हैं, यजीद एक दुष्ट अपराधी, हत्यारा और बेशर्म व्यक्ति है। मेरे जैसा व्यक्ति उसके जैसे व्यक्ति के अत्याचारी रास्ते पर चल नहीं सकता कहकर यजीद की बात मानने से इंकार कर दिया।
यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके साथियों को करबला के मैदान में घेर लिया, जहां मुहर्रम के 10 वें दिन वे शहीद हो गए। इस लड़ाई में इमाम हुसैन के साथ उनके 72 साथी भी शहीद हो गए।
इमाम हुसैन और उनके साथी अन्याय और अत्याचारी यजीद के खिलाफ खड़े थे, यजीद और उसकी सेना जिन्होंने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर अत्याचार किया था करबला की घटना मजलूमों के साथ एकजुटता दिखाने और जालिमों के खिलाफ खड़े होने का संदेश देती है। यह हमें सिखाता है कि हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और पीड़ितों का समर्थन करना चाहिए।
जब भी यज़ीद जैसा कोई अत्याचारी व्यक्ति शासन पर कब्ज़ा करता है और जुल्म जबरदस्ती और अत्याचार करता है, तो हर सच्चे मुसलमान ही नहीं हर इंसान को ख़ास तौर पर इमाम हुसैन के अनुयायियों पर यह फर्ज है कि वे उसके आगे न झुकें, बल्कि उसके जुल्म और अपराधों का विरोध करें, भले ही इसका नतीजा उनकी खुद की शहादत हो, मुहर्रम के दसवीं (पहलाम) को करबला में शहीद ईमाम हुसैन की जंग ए मंजर को याद कर गम मनाया जाता है।
बताया जाता है कि ईमाम हुसैन ने अपनी शहादत देकर इस्लाम को बचा लिया।
करबला की घटना को इस्लाम में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है, जो न्याय, बलिदान, और अन्याय के खिलाफ खड़े होने के महत्व को दर्शाती है।
