श्रद्धांजलि सभा में छलक उठीं आँखें,नवविवाहित राहुल पाठक को दी गई भावभीनी अंतिम विदाई

श्रद्धांजलि सभा में छलक उठीं आँखें,नवविवाहित राहुल पाठक को दी गई भावभीनी अंतिम विदाई

मंगलवार का दिन शहर के लिए मानो एक भारी बोझ लेकर आया। सनातनी धर्म रक्षक गुरु पाण्डेय के आह्वान पर जब श्रद्धांजलि सभा में लोग एकत्र हुए तो माहौल में एक ऐसी खामोशी थी जो किसी भी हृदय को कंपा दे।हर चेहरे पर एक ही प्रश्न दर्ज था आख़िर इतनी जल्दी क्यों चला गया राहुल?
सोमवार की सुबह हुए दर्दनाक सड़क हादसे ने ब्राह्मण समाज के इस ऊर्जावान,सरल और सदैव मुस्कुराने वाले युवा कार्यकर्ता राहुल पाठक को हमसे हमेशा के लिए दूर कर दिया। खबर ने पूरे क्षेत्र को जैसे स्तंभित कर दिया।किसी को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसने दो दिन पहले ही विवाह के पवित्र बंधन में कदम रखा, वह आज स्मृतियों में बदल चुका है।
29 नवंबर को हुई राहुल की शादी ने परिवार में खुशियों की ऐसी लहर दौड़ाई थी कि घर-आँगन चहकता रहा। मेहमानों की आवाजाही,शहनाई की गूँज,आशीर्वादों की मधुर धुन और नई जिंदगी की उमंग सब कुछ मानो कल की ही बात थी। पर किसे अंदाज़ा था कि वही घर दो ही दिनों बाद मातम के साये में डूब जाएगा और नई दुल्हन की मेहंदी का रंग आहों व आँसुओं में धुँधला पड़ जाएगा।
श्रद्धांजलि सभा में पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी,सनातनी धर्म रक्षक अर्जुन पाण्डेय,विभाकर नारायण पाण्डेय,कमलेश शुक्ला, देवेन्द्र तिवारी,मनु प्रसाद तिवारी, विजय तिवारी,नवीन तिवारी, मनीष ओझा,मुकेश तिवारी, मधुकर शुक्ला,आशीष भारद्वाज, दिलीप तिवारी,अभिषेक तिवारी, कुलबुल दूबे, रमेश शुक्ला, बृजेश तिवारी, आनंद प्रकाश दूबे,आर के चंदन, विक्रांत त्रिपाठी व मुन्ना पाण्डेय सहित सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता,वरिष्ठजन और युवा साथी मौजूद रहे।पूरा वातावरण इतना गमगीन था कि जैसे हर नज़र कह रही हो—राहुल, इतनी जल्दी जाने की क्या जल्दी थी?
वक्ताओं ने नम आवाज़ में राहुल के सरल व्यक्तित्व,उसकी विनम्रता और समाज के प्रति उसके निःस्वार्थ समर्पण को याद किया।किसी ने कहा, “राहुल से मिलते ही मन हल्का हो जाता था, उसकी मुस्कान किसी भी दुख को पल भर में दूर कर देती थी।”
सभा में दो मिनट का मौन रखा गया। कई लोग सिर झुकाए, आँसू पोंछते हुए उस युवा चेहरे को याद कर रहे थे जिसकी हँसी आज भी मन की गलियों में गूंजती है।

यह सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि एक पूरे सपने के टूट जाने जैसा है—एक ऐसी उड़ान का ठहर जाना, जो अभी शुरू ही हुई थी।
राहुल पाठक का जाना समाज के हृदय में ऐसी रिक्तता छोड़ गया है जिसे समय भी शायद पूरी तरह नहीं भर पाएगा।

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