“जहां मुख्यमंत्री तक भरोसे से इलाज नहीं करवा सके, उस राज्य में आम आदमी का क्या होगा?”
कितनी अजीब है –
कुर्सी है, सत्ता है, पर हालातों के आगे लाचार है..
जिस जल, जंगल और ज़मीन के लिए
दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने
दिल्ली की छाती पर चढ़ कर लड़ाई लड़ी थी,
आज उसी झारखंड की धरती पर उन्हें इलाज तक नसीब नहीं हो रहा..
सोचिए —
बेटा हेमंत सोरेन,
तीन बार मुख्यमंत्री, एक बार डिप्टी सीएम,
और पिता शिबू सोरेन, तीन बार मुख्यमंत्री,
फिर भी इलाज के लिए झारखंड छोड़कर
दिल्ली की दहलीज़ पर दस्तक देनी पड़ती है।
क्यों?
क्योंकि इस 25 साल के राज्य में
अब तक एक ऐसा अस्पताल नहीं बना
जहां खुद मुख्यमंत्री भी भरोसे से इलाज करवा सके.
तो आम आदिवासी की तो बात ही क्या?
रिम्स अस्पताल — जहां
बिरसा मुंडा के वंशज, हमारे अपने लोग, तड़प-तड़प कर दम तोड़ देते हैं, और मृत शरीर तक पैसों की बोली में लिपटा होता है..
उधर सत्ता के गलियारे में
‘मैया सम्मान यात्रा’ की रेवड़ियां उड़ रही हैं,
लेकिन झारखंड को एक विश्वस्तरीय अस्पताल देने का
वादा, कहीं फाइलों की धूल में दम तोड़ रहा है.
झारखंड, तो अब 25 की जवानी में है,
लेकिन सवाल आज भी अधूरा है —
क्या इसी सपने के लिए हज़ारों लोगों ने आंदोलन किया, अपने जानो को कुर्बान कर दिया।
क्या यही है वो राज्य, जिसकी नींव हजारों आंदोलनकारियों ने खून और आंसुओं से रखी गई थी?
सवाल झारखंड से है —
कब बनेगा वो अस्पताल, जहां सत्ता और जनता एक कतार में इलाज पा सकें?
कब आएगा वो दिन, जब बिरसा मुंडा का सपना हकीकत बन पाएंगे?
