चंदन पांडे की रिपोर्ट,गिरिडीह
रंगमंच एक काल कोठरी है जो ईसमे आता है निकल नहीं पाता
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नाटक काल कोठरी का मंचन अधिवक्ता संघ भवन के हौल में हुआ। कला संगम के कलाकारों ने स्वदेश दीपक द्वारा लिखित तथा सतीश कुन्दन द्वारा निर्देशित तथा नीतीश आनंद द्वारा डिजाइन किया गया नाटक काल कोठरी में सभी कलाकारों ने उम्दा प्रदर्शन किया। नाटक का कथानक रंगमंच से जुड़े कलाकारों के ईर्दगिर्द घूमता है कि किस प्रकार कलाकार अपनी दैनिक जीवन की कठिनाइयों और परिवार का उलाहना सुनते हुए नाटक करते हैं संस्कृति विभाग के निदेशक के ठसक का किस प्रकार शिकार होते हैं यह दर्शाता है रजत की भुमिका में नीतीश आनंद जो एक उम्दा कलाकार है लेकिन नौकरी नहीं है रोजमर्रा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपनी पत्नी से ताने सुनता रजत नौकरी की तलाश में जब संस्कृति विभाग के औफीसर के पास जाता है वहां की लालफीताशाही का शिकार होकर आईएएस औफीसर के खिलाफ आक्रोशित हो जाता है रजत की पत्नी मीनाकी भुमिका में सुजात कुमारी ने अपने अभिनय से दर्शकों से खुब तालियां बटोरी महेन्द्र और बलवंत की दोहरी भूमिका में रवीश आनंद ने अपने अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया अंशिका आनंद ने लंगड़े बच्चे अंगद की भुमिका करते हुए यह दर्शाता है कि किस प्रकार एक अभावग्रस्त परिवार में चिंताओं से मुक्त एक बच्चे की बचपन की लालसा को दिखलाता कि भूखे बच्चे के सामने जब शोभा और कांता की दोहरी भूमिका कर रही संस्कृति आनंद जो नौकरी करने वाली रजत की बहन की भुमिका में है खाना लाती है तब भुखे बच्चे किस प्रकार उत्पेरित हो जाते हैं दर्शाता है उसके ईस कृत्य पर पिता की डांट सुनती है घटना दर्शकों को रूला गया रजत के पिता की भुमिका में शुभम कुमार जो एक रिटायर्ड कर्मचारी हैं रजत के तनाव को समझते हैं और अपनी बहु को समझाते हैं कि रजत अच्छा कलाकार है कभी किसी पर गुस्सा नहीं करता बेरोजगारी ने उसे ऐसे कर दिया है। संस्कृति विभाग के निदेशक की भुमिका में अनुराग सागर ने अपने अभिनय क्षमता से यह दर्शाता है कि किस प्रकार एक औफीसर जिन्हें नाटक की बारिकियों का पता नहीं उल्टे पुल्टे सवाल करके कलाकार की क्षमता की अवहेलना करते हैं दर असल उस औफीसर को ना रजत को नौकरी देना था ना ग्रांट सिर्फ कलाकार को ईंसल्ट करना था। अनुष्का सिन्हा वसुंधरा की भुमिका करते हुए एक बेरोजगार कलाकार नौकरी की चाहत में संस्कृति विभाग में एक साक्षात्कार में भाग लेने की अच्छी भुमिका अदा की। लेखक नवीन वर्मा की भुमिका में ईंद्रजीत मिश्रा जो एक आदर्शवादी लेखक हैं उन्होंने दस नाटक लिखा है लेकिन आदर्शवादी नाटक होने के कारण एक का भी मंचन नहीं हुआ लेकिन निर्देशक बद्रीकौल की भुमिका कर रहे संदीप सिन्हा ने नाटक को जिवंतता प्रदान की नाटक तब बहुत ही भावनात्मक रूप लिया जब नवीन वर्मा की पत्नी भुमिका अदा कर रही अर्पिता को अपंग अंगद कहता है मैं भी साथ चलुंगा तो अर्पिता अपने बच्चे की याद में वह विलख कर रोने लगती है कि आज उसका बच्चा होता तो ईतना ही बड़ा होता वह भी एक अभिनेता बनना चाहता था दर्शकों ने तालियों की गडगडाहट से उसके अभिनय की तारीफ की। ईस नाटक को संगीत लाईट विकास रंजन ने दिया।
नाटक का द्वीप प्रज्वलित कर विधिवत् उद्घाटन कला संगम के संरक्षक राजेन्द्र बगडिया उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार सिन्हा सचिव सतीश कुन्दन संयोजक चुन्नुकांत बिनय बक्शी अरित चंद्रा मदनमंजर्वे राजीव रंजन ने संयुक्त रूप से किया। चुन्नूकांत ने नाटक की सराहना करते हुए कहा कि पहले मै आया था कि सिर्फ सतीश जी को भेंट कर चला जाउंगा लेकिन नाटक के दृश्य को देखकर ऐसा कर नहीं सका उन्होंने ने कलाकारों को तोहफा दे प्रोत्साहित किया नकद देकर प्रोत्साहित करने वाले में मनोज कुमार मुन्ना राजीव रंजन संजीव रंजन सुनील भूषण कृष्ण कुमार सिन्हा बिनय बक्शी थे। राजेन्द्र बगडिया ने कहा कि सभी कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता से नाटक को जीवंत कर दिया सभी कलाकारों को उन्होंने नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया। धन्यवाद ज्ञापित किया उपाध्यक्ष श्री कृष्णा बाबू ने। कार्यक्रम में दर्शकों की उपस्थिति अच्छी थी। कला संगम के संगीत प्रभारी अरित चंद्रा राजीव रंजन अजय शिवानी अशोक गुप्ता संजय सिन्हाअजय वैशखियार धरणीधर सिद्धांत, राजन बर्णवाल निवेश सिन्हा, आकाश रंजन, मिडिया प्रभारी सुनील मंथन शर्मा अनुपम किशोर स्वाति सिन्हा, अनुपमा सिन्हा अंजली भुमि अंजली सिन्हा राजेश अभागा सहीत सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

