भोपाल सीआरपीएफ के कैंपस में मासिक पत्रिका ‘अरण्य वाणी’ के अप्रैल अंक का हुआ विमोचन

भोपाल सीआरपीएफ के कैंपस में मासिक पत्रिका ‘अरण्य वाणी’ के अप्रैल अंक का हुआ विमोचन…

सुप्रसिद्ध लोकगायक पद्मश्री डॉ. कालूराम बामनिया को किया गया सम्मानित

हुसैनाबाद। मध्य प्रदेश सेक्टर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, बंगरसिया, भोपाल में मालवा अंचल के कबीर कहे जाने वाले पद्मश्री डॉ. कालूराम बामनिया जी का आगमन हुआ। बल की ओर से उनका स्वागत व सम्मानित भोपाल रेंज की डीआईजी नीतू डी. भट्टाचार्य ने पुष्पगुच्छ व शॉल देकर किया। इस अवसर पर उनके साथ कमांडेंट संजीव रंजन, डीआईजी आर. के. मिश्रा, डीआईजी (चिकित्सा) सहित कमांडेंट राम लखन राम, सेक्टर मुख्यालय, कमांडेंट ओ. आर. एम. मुंडा, सेक्टर मुख्यालय, कमांडेंट अजय सिंह, ग्रुप केंद्र भोपाल, कमांडेंट मनीष कुमार यादव, 41 बटालियन, भूतपूर्व कमांडेंट प्रवीण कुमार, सहायक कमांडेंट ऋषभ शर्मा, सहायक कमांडेंट (राजभाषा) नागराज द्विवेदी सहित कलाव्योम संस्था देवास-भोपाल के प्रमुख अशोक जी भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर डॉ. बामनिया जी समेत अन्य सभी पदाधिकारियों ने झारखंड के पलामू ज़िले के हुसैनाबाद अनुमंडल से प्रकाशित होने वाली ‘अरण्य वाणी’ मासिक पत्रिका के अप्रैल-2025 अंक का विमोचन किया। मौक़े पर डॉ. बामनिया जी ने ‘अरण्य वाणी’ पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं का अवलोकन करते हुए ‘झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई’ के जीवन दर्शन पर प्रस्तुत आलेख और पत्रिका की सराहना की। इस अवसर पर उन्होंने अपनी पिछली पलामू यात्रा याद की और वहाँ पर ‘सुबह की धूप’ पत्रिका द्वारा आयोजित कार्यक्रम की चर्चा की। साथ ही, उन्होंने झारखंड की धनी संस्कृति की सराहना की। पलामू का आतिथ्य उनके ज़ेहन में ताज़ा है और ‘अरण्य वाणी’ पत्रिका के विमोचन ने उसे और यादगार बना दिया। ‘अरण्य वाणी’ पत्रिका के संपादक मंडल एवं पाठकों के लिए उन्होंने अपनी अशेष शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।

विदित हो कि डॉ. कालूराम बामनिया कबीर पंथ की वाणी को मालवी भाषा में प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, मीरा तथा अन्य संत कवियों की वाणी को भी पारंपरिक धुनों पर गाते हैं। उनकी जीवन यात्रा एक तप के समान है और अपने लोक संगीत के संघर्ष से लोक गायक की परंपरा को एक नई ऊँचाई प्रदान करते हुए मालवा की माटी को अधिक समृद्ध किया है और मालवा को एक मज़बूत पहचान दी है। उन्होंने अपने जीवन की आर्थिक कठिनाइयों के अंतर्गत उपजे झंझावतों से, इन सबके बावजूद, अपने जीवन में क्षेत्रीय लोक शैली को सँजोये रखा और लोक चेतना से अपने संगीत को जोड़े रखा। उनके इस संघर्षशील गायन यात्रा ने गायन प्रति दिवानगी को जन्म दिया है, जो उनकी संगीत साधना के प्रति उनके जुनून व समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने अपने गानों में सदैव बड़ी गरिमा के साथ जोड़ते हुए अपने संगीत से स्वर ऊँचाई बनाए रखी। उन्होंने मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने की बात की है, समरसता और प्रसन्नता की बात। उनके गीतों ने नेतृत्व की बात की है और यही बातें उन्हें महानता की ओर ले जाती हैं। भारत सरकार ने लोकगायन में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2024 में आज ही के दिन ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया था।

डॉ. बामनिया ने कबीर के भक्तिमार्ग की चर्चा करते हुए कहा कि कबीरदास जी ने समाज में फैली कुरीतियों, कुसंस्कारों, अंधविश्वासों के विरुद्ध और अन्य सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि कबीर ने आत्मा व जन्म और मृत्यु के शोक नहीं, अपितु उत्सव गाए हैं। वे प्रकृति को ईश्वर का रूप मानते थे। इसके बाद उन्होंने एक भजन, ‘जागृत रहना रे नगर में, चोर आवेगा…!’, गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत में, उन्होंने बल के सभी अधिकारियों का आभार माना, अपनी शुभकामनाएँ दीं और कहा कि बल के कार्यक्रमों में वे सदैव अपनी उपस्थिति देते रहेंगे।

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