बेटी से बलात्कार करने वाले पिता को मिला 20 वर्ष की सजा

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बेंगलुरु: बेंगलुरु की एक पोक्सो अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी नाबालिग बेटी से बलात्कार के आरोप में 20 साल जेल की सजा सुनाई है और 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। एक आधिकारिक बयान में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई।

वेस्ट डीसीपी डिविजन की ओर से जारी बयान के मुताबिक. श्रीनिवासनगर के पास टेलीफोन लेआउट निवासी रामू को पंचम अपर एवं सत्र पॉक्सो कोर्ट ने सजा सुनाई। बयान में कहा गया है कि आरोपी ने जनवरी से मार्च 2022 के बीच अपनी नाबालिग बेटी के साथ कई बार बलात्कार किया और उसे गर्भवती कर दिया।

एक शिकायत के बाद तत्कालीन जांच अधिकारी बी.एन. लोहित ने रामू के खिलाफ पॉक्सो कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया। न्यायाधीश एन नरसम्मा ने गुरुवार को आरोपी को दोषी ठहराया।

न्यायाधीश ने कर्नाटक लीगल सेल अथॉरिटीज को पीड़िता को 7 लाख रुपये मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। पुलिस ने दोषी पर आईपीसी की धारा 376 (आई), (एन) और पोक्सो एक्ट की धारा 4, 6 और 8 के तहत मामला दर्ज किया था।

14 साल के लड़के के रेप का शिकार हुई 10 साल की लड़की ने जताई मां बनने की इच्छा

ब्रिटेन में 14 साल के लड़के से बलात्कार का शिकार होने के बाद गर्भवती हुई 10 वर्षीय लड़की को जज ने बच्चे को पालने की इच्छा के बावजूद गर्भपात कराने का आदेश दिया है। लड़के और लड़की की मुलाकात ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हुई थी। इसके बाद दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं। इस बीच मौके का फायदा उठाकर 14 साल के लड़के ने बलात्कार किया। यह घटना मई की बताई जा रही है। लड़की ने गर्भवती होने की पुष्टि होने के बाद बच्चे को जन्म देने की इच्छा जताई थी, जिसे लंदन हाईकोर्ट के न्यायधीश ने खारिज कर दिया। पीड़ित लड़की ने कहा कि गर्भवस्था ने उसे विशेष महसूस कराया है, लेकिन न्यायाधीश ने बुधवार को दिए आदेश में कहा कि इस सप्ताह होने वाला गर्भपात बच्चे के सर्वोत्तम हित में है। इस मामले की सुनवाई पिछले महीने काफी गोपनीय रूप से शुरू हुई थी।

लंदन हाईकोर्ट की जस्टिस अर्बुथनॉट ने कहा कि लड़की उस समय 14 सप्ताह और छह दिन की गर्भवती थी। अपने फैसले में उन्होंने कहा, ”जब पीड़िता को गर्भावस्था जारी रखने के कई जोखिमों के बारे में समझाया गया, तो उसने गर्भवती होने पर खुशी जाहिर की और कहा कि वह इसे जारी रखना चाहती है। पीड़िता ने कहा कि इससे उसे ‘विशेष’ महसूस हुआ। पीड़िता की मां ने भी उसकी स्थिति का समर्थन किया।” लेकिन एक मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार ने कहा कि लड़की अभी गर्भ धारण करने के योग्य नहीं है और वह बहुत आदर्शवादी और अवास्तविक लगती है।

न्यायाधीश ने आगे कहा कि उनके विचारों में गर्भावस्था के प्रति उनके दृष्टिकोण में ‘भोली भाली जादुई सोच’ शामिल थी। “उसके पास निर्णयों की जटिलता को जांचने के लिए बौद्धिक विकास और क्षमता का अभाव था। उसका भावनात्मक रुख स्पष्ट रूप से उसके निर्णय को अस्पष्ट कर रहा था। उन्होंने कहा कि लड़की के बच्चा पैदा करने का निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण कारक यह था कि बच्चे के जन्म से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उसे स्कूल वापस नहीं जाना पड़ेगा।

लड़की, जो अब 11 साल की है और अपने मां-बाप के साथ घर पर रहती है। वह फरवरी से स्कूल नहीं गई है। विशेषज्ञों की एक टीम ने इस बात पर विचार किया कि अगर वह गर्भधारण जारी रखती है तो बच्चे को क्या खतरा हो सकता है और सर्वसम्मति से इस बात पर सहमत हुए कि गर्भपात कराना उनके सर्वोत्तम हित में है।

न्यायाधीश ने कहा कि उसकी छोटी शारीरिक संरचना के कारण प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु की संभावना बढ़ सकती है। उसके माता-पिता को जोखिम और लाभ समझाए गए और वे बाद में अबार्शन का समर्थन करने के लिए सहमत हुए। जस्टिस आर्बुथनॉट ने आगे कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम गर्भावस्था के सामान्य जोखिमों से अधिक थे। विशेषज्ञों ने कहा कि 11 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गर्भावस्था पर कोई अध्ययन नहीं किया गया है। अध्ययन में 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों को शामिल किया गया है।

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