प्रवासी मजदूरों की पीड़ा रेलवे स्टेशन से व्याख्या;

प्रवासी मजदूरों की पीड़ा रेलवे स्टेशन से व्याख्या!
जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं इस समय रात 1:30 बजे को है.मैं प्रवासी मजदूरों के पीड़ा को व्याख्या कर रहा हूं! पलामू जिला के डाल्टेनगंज रेलवे स्टेशन पर भारी नवजवानों की भीड़ थी,महिलाएं और बच्चे भी काफी संख्या में थे. 16– 17साल के छात्रों की संख्या भी ठीक ठाक थी. मैं रांची से डालटेंगज आया था,काफी भीड़ होने के कारण थोड़ा रुका… कुछ देर बाद मेरे परिचित के कई नौजवान साथियों पर नजर पड़ा….. बात चीत होने लगी ,तब तक काफी लेट हों चुका था और मैं ऑफिस नही जा पाया!
दातुन बेचने वाली आदिवासी महिलाएं स्टेशन पर जमीन के नीचे बैठने वाला प्लास्टिक भी बेचा करती है..लेकिन वे सभी लोग जमीन पर ही इस कड़कती ठंड में सो गई थी। स्टेशन के सभी जगहों पर भीड़ ही भीड़ दिख रही थी. बैठने मात्र की जगह बिलकुल नही था ।जो पूरा परिवार के साथ स्टेशन पर थे वे प्लास्टिक खोज रहे थे ताकि किसी तरह बैठा जा सके। पूरा स्टेशन कड़कती ठंड में खुले आसमान के नीचे शीत की कहर में भरा हुआ था। कई लोग एक जैकेट पहने हुए कान में गमछा बंधे ठिठुर रहे थे उनकी दाढ़ी कप रही थी……………………….
टिकट काटने के लिए लोगों की होड़ लगी हुई थी,स्टेशन के अंदर टीटीई अलग से टिकट दे रहे थे..टिकट घर में खचा-खच भीड़ थी,लंबी –लंबी चार लाइने लगी हुई थी ।
जब साथियों एवम अन्य लोगों से बात चित किया तो पता चला कि ये सभी नौजवान ,महिलाएं,बच्चे पंजाब,दिल्ली,गुजरात,हरियाणा जैसे राज्यों में काम करने जा रहे है। दीपावली,छट में वे घर आए थे.कई लोगो ने बताया कि कर्जा लेकर छट किए थे,छट माता का आशीर्वाद से कर्ज भी मिल गया और अच्छा से पूजा पाठ हुआ! कई मजदूर साथियों ने बताएं कि बीमारी ने पूरा घर को तोड़ दिया है. कर्ज और लोन लेकर ईलाज कराएं है .लोन कर्जा भरना है. नही चाह कर भी जाना पड़ रहा है।
साथ ही कई लोगों ने बताए कि खेती बाड़ी नही हुआ है। धान उन होबे नही किया तो क्या खायेंगे? कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा!
मैं उपरोक्त सवालों से घिरे,मजबूरी लाचारी,दुखदाई पीड़ा को सुन रहा था और मन ही मन वर्तमान शासन व्यवस्था पर आक्रोश हो रहा था।
झारखंड,पलामू से हजारों की संख्या में नौजवान,महिलाएं,बच्चे दूसरे राज्यों में पलायन करने पर मजबूर क्यों है? झारखंड खनिज संपदाओं से भरापुरा है.फिर भी यहां के नौजवानों को राज्य में नौकरी,रोजगार के संसाधन क्यों नही मिल रहा है?
जारा सोचिए जो नौजवान कि शादी के कुछ महीने बीते है,हाथ के महंदी का रंग भी नही उड़ा है.खुशी और प्यार का सपना सजाएं है लेकिन बच्चे,परिवार मां बाप को छोड़ सपनों को चकनाचूर कर इस भीड़ का हिस्सा क्यों बन रहे है।?
राज्य में बाल मजदूरी,बाल तस्करी का रिकॉर्ड किसी से छुपा नही है.आखिर पढ़ने लिखने के उम्र में उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों? और क्या मजबूरी है ?
प्रवासी मजदूरों भाइयों को बाहर में सामाजिक,आर्थिक कोई सुरक्षा नही होती है ,मैंने मजदूरों को सहतुत के जैसे मौत देखा है,बस जमीन में उनकी खून का धाबे पड़े होते हैं। उनकी लाशे घर पर आती है और उनके बस स्मृति रह जाती हैं!
आखिर देश के नौजवानों,महिलाएं बच्चे इस दुर्दशा व्यवस्था के शिकार हों रहे है.इसके पीछे किसको माना जाएं ? जो दिन रात मेहनत कर सिर्फ अपना पेट पाल रहा है।उसको माना जाएं या सत्ता के चासिन में डूबे, राजनेताओं, कारपोरेट घरानों जिनकी संपति लागतार बढ़ रही है,उसको माने! आप पढ़ कर खुद तय करें और सम्भव हो तो क्रिया प्रतिक्रिया भी साझा करें।
उपरोक्त सवालों पर विचार विमर्श आप जरूर कीजिए इसलिए यह पोस्ट को मैंने लिखा है !